चार विद्रोही संत – एक ही सच | Osho, Kabir, Krishnamurti और Acharya Prashant की सोच “सत्य कोई मार्ग नहीं है, यह मार्गहीन है।” – J. Krishnamurti “मस्जिद ढायो, मंदर ढायो, मन का दंभ न ढायो?” – Kabir “धर्म एक ज़हर है, जो तुम्हारे भीतर की खोज को मार देता है।” – Osho “जहाँ भीड़ है, वहाँ सत्य नहीं हो सकता।” – Acharya Prashant चार अलग-अलग युग, चार अलग-अलग संत… लेकिन एक ही विद्रोही आत्मा। 🧠 यह लेख क्यों पढ़ें? यदि आपने कभी Osho की बातें सुनी हैं, Kabir के दोहे से चौंके हैं, Krishnamurti के दर्शन से सोच में डूबे हैं या Acharya Prashant की आवाज़ से हिले हैं — तो यह लेख आपको वह गहरा पुल दिखाएगा, जो इन चार विद्रोही आत्माओं को जोड़ता है। 🔥 एक विद्रोह, चार चेहरे 1. Kabir: शब्दों से युद्ध 15वीं सदी का वह जुलाहा, जिसने अपने दोहों से ब्राह्मणवाद और पाखंड पर सीधी चोट की। “पढ़ि पढ़ि पंडित मूढ़ भया, पढ़ि पढ़ि भया गधेराम।” Kabir की भाषा आम थी, लेकिन विचार परम थे। 2. Krishnamurti: सोच का विस्फोट 20वीं सदी का वह विचारक जिसने कहा: “सत्य कोई संगठन नहीं बन सकता। न ही यह किसी ...
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